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Showing posts from July, 2021
छोटा सा लेख कृष्ण कुमार शुक्ल
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* जैसे सूरज की गर्मी * जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाये तरुवर कि छाया ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है मैं जबसे शरण तेरी आया, मेरे राम भटका हुआ मेरा मन था कोई मिल ना रहा था सहारा लहरों से लड़ती हुई नाव को जैसे मिल ना रहा हो किनारा, मिल ना रहा हो किनारा उस लड़खड़ाती हुई नाव को जो किसी ने किनारा दिखाया ऐसा ही सुख ... शीतल बने आग चंदन के जैसी राघव कृपा हो जो तेरी उजियाली पूनम की हो जाएं रातें जो थीं अमावस अंधेरी, जो थीं अमावस अंधेरी युग युग से प्यासी मरुभूमि ने जैसे सावन का संदेस पाया ऐसा ही सुख ... जिस राह की मंज़िल तेरा मिलन हो उस पर कदम मैं बढ़ाऊं फूलों में खारों में, पतझड़ बहारों में मैं न कभी डगमगाऊं, मैं न कभी डगमगाऊं पानी के प्यासे को तक़दीर ने जैसे जी भर के अमृत पिलाया ऐसा ही सुख ...
Krishna
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*उमरिया धोखे में खोये दियो रे* उमरिया धोखे में खोये दियो रे। धोखे में खोये दियो रे। पांच बरस का भोला-भाला बीस में जवान भयो। तीस बरस में माया के कारण, देश विदेश गयो। उमर सब .... चालिस बरस अन्त अब लागे, बाढ़ै मोह गयो। धन धाम पुत्र के कारण, निस दिन सोच भयो।। बरस पचास कमर भई टेढ़ी, सोचत खाट परयो। लड़का बहुरी बोलन लागे, बूढ़ा मर न गयो।। बरस साठ-सत्तर के भीतर, केश सफेद भयो। वात पित कफ घेर लियो है, नैनन निर बहो। न हरि भक्ति न साधो की संगत, न शुभ कर्म कियो। कहै कबीर सुनो भाई साधो, चोला छुट गयो।।