कविता
*कविता प्राप्त हुई, अच्छी लगी, पोस्ट कर रहा हूं चर्चों से चिठ्ठी निकल पड़ी, मस्जिद का फतवा बोल रहा। यदि मंदिर अब खामोश रहे, समझो फिर खतरा डोल रहा। वो देश चलाएं फतवे से, तुम तेल सूंघते ही रहना। जब घर में घुसकर मारेंगे, तब हाथ रगड़ते ही रहना। वो काल-खण्ड हम याद करें, जब बंटे हुए थे जाति में। पराधीन यह देश हुआ, व घाव मिला था छाती में। हिन्दू विघटन के कारण हीं, ...